Friday, August 28, 2009

चौबीस घंटे, दो झूठ! पर्दे पीछे बेवकूफ?

झूठ नं. 1 - पोखरण-2 परमाणु परीक्षण में शामिल वैज्ञानिकों का कहना कि मई 1998 में भारत की कामयाबी महज एक छलावा थी। झूठ नं. 2 - हालैंड राष्ट्रीय संग्रहालय के कर्मचारियों का बयान कि पिछले 40 वर्षों से उन्होंने जिस 'पत्थर के टुकड़े' को ''चांद का टुकड़ा'' मानकर संभाले रखा, वह महज एक ''लकड़ी का टुकड़ा'' है।

पहले झूठ का पर्दाफाश (?) उस वक्त परमाणु परीक्षण टीम में शामिल वैज्ञानिक संथानम ने किया, जिनके पक्ष में अन्य वैज्ञानिक भी हैं। पूर्व राष्ट्रपति व तात्कालीन महानिदेशक कलाम, और तात्कालीन परमाणु ऊर्जा विभाग प्रमुख आर. चिदम्बरम ने इसे यह कहकर बेतुका कहा कि तब कुल पांच परीक्षण हुए थे, जिनमें तीन 11 मई को और दो 13 मई को हुए थे। थर्मोन्यूक्लियर विस्फोट 13 मई को हुआ था, जो सफल था।

सवाल यह उठता है कि 11 नहीं, 13 मई ही सही, लेकिन जमीन से सौ मीटर नीचे जहां यह परीक्षण हुआ वहां विस्फोट के बाद ''क्रेटर'' निशान क्यों नहीं बने? उधर संथानम ने सलाह भी दे डाली है कि भारत को अपनी सुरक्षा के लिए और परीक्षण करने चाहिए तथा किसी भी कीमत पर सीटीबीटी पर दस्तखत नहीं करने चाहिए।

यानी देश और दुनिया की निगाहों में खुद को मजबूत बताने की सरकारी मुहिम हमारे सामरिक वजूद के साथ समझौते के रूप में पूरी हुई। इसका प्रतिफल डॉ. कलाम को तो राष्ट्रपति बनाकर मिल गया, लेकिन इन वैज्ञानिकों के हाथ कुछ नहीं आया।

दूसरी तरफ, पूर्व डच प्रधानमंत्री विलेम ड्रीस की 1988 में मृत्यु के बाद उनके पास रखे एक पत्थर को हालैंड की राजधानी एम्सटर्डम के संग्रहालय में संजोकर रखा गया। यह पत्थर अपोलो-11 के अंतरिक्ष यात्रियों की हालैंड यात्रा के वक्त अमेरिका के तात्कालीन राजदूत मिलेनडार्फ ने डच प्रधानमंत्री को भेंट किया था। लेकिन अब पता चला है कि यह लकड़ी का एक टुकड़ा है जो समय के साथ कड़ा होकर पत्थर जैसा हो गया था।

यानी या तो अपोलो-11 के अंतरिक्ष यात्रियों ने इतना बड़ा झूठ डच प्रधानमंत्री को भेंट कर दिया, अथवा संग्रहालय के लोगों ने ही पीछे के दरवाजे से कोई हेराफेरी कर डाली है।

बेवकूफों का सच!

1) दोनों ही हालातों में आम जनता सिर्फ बेवकूफ बनकर तालियां पीटती रही, सच्चाई का उसे पता ही नहीं।
2) दूसरी तरफ इसी आम जनता को इससे कोई सरोकार भी नहीं। बस जितनी तालियां बजा लीं, समझो बाबा रामदेव का योगासन कर लिया।
3) तभी तो 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस करने वाली, उसके बाद गुजरात दंगे भुगतने वाली और हाल ही में समलैंगिकता पर तालियां बजाने वाली जनता इतने बड़े झूठ को बस चुपचाप पी गई।

3 comments:

  1. ओह दोनों झूठ ने कलई खोल कर रख दी वाह र्रोचक

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  2. इन बेवकूफों को एक दो बम कही आस-पड़ोस में आजमाकर देख लेने चाहिए, नहीं तो पडोसीयो के हमले के वक्त दिल में धुक-धुक लगी रहेगी ! :)

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  3. बहुत दिनों पहले कहीं पढा था कि मनुष्य द्वारा चन्द्रमा की धरती पर कदम रखना नासा द्वारा फैलाया गया एक झूठ मात्र था। सभी चित्र जिनमें कि इन्सान को चन्द्रमा की धरती पर उतरते,चलते दिखाया गया था,उन्हे किसी ध्रुवीय प्रदेश में खीँचा गया था।
    ये सब पढते समय मन में यही विचार आया था कि क्या बकवास लिखा है! कहीं ऎसा भी कुछ हो सकता है। लेकिन आज आपका आलेख पढकर ये लगने लगा है कि सचमुच ये वैग्यानिक लोग दुनिया की नजरों में कैसा भी भ्रम निर्मित कर सकते हैं!!

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