देना पड़ेगा इम्तेहान,
जन्नत में है ऐसा रिवाज़।
हर कदम अंगार पे,
हर कदम अंगार पे,
साबित करे अपना मिज़ाज।
इक रोज़ शौहर ने जो पूछा,
इक रोज़ शौहर ने जो पूछा,
कोख में किसका है बीज।
आंख भर आई जो साबित -
आंख भर आई जो साबित -
हो गया उसका ही साज़।
मैं अकेला ही चला था,
मैं अकेला ही चला था,
यूं बदलने आसमां।
पहले पैबंदे-निशां पे,
पहले पैबंदे-निशां पे,
दूं सफाई देख आज।
सुन ले जन्नत के खुदा,
सुन ले जन्नत के खुदा,
तेरी नियामत के निसार,
बेजान कदमों को उठाना -
बेजान कदमों को उठाना -
है मुझे, जो लाइलाज।
मार्मिक रचना, लाजवाब। बधाई
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