Wednesday, November 17, 2010

बस यूं ही अनायास...

आदमी क्यूं बनता है कमजोर
अंजान, अपरिचित
बस यूं ही अनायास...
एक पूरा वजूद
बदल डालता है फितरत
बस यूं ही अनायास...

धारा का अविरल द्वंद्व
रोड़ों और चट्टानों के बीच
तलवारें नहीं चलतीं
जुबान भी टकराती नहीं -
दिल और दिमाग के बीच,
जंग नहीं -
चीख-पुकार भी नहीं
बहता है अविरल संगीत
बस यूं ही अनायास...

बादलों की ओट से सूरज का
अस्ताचल का सफर
धरती पर -
सुबह की सैर करता है आदमी
धूप में, हाथ की छड़ी से
ललकारता है बादलों की छांव।
छांव आगे बढ़ती है,
धूप में नहाकर आगे बढ़ता है आदमी -
सिर्फ एक छड़ी से बुहारता
ठंडी छांव,
समेटता धूप को,
या
सिमटता धूप में
अंजलि भर रोशनी के लिए -
बस यूं ही अनायास...

Saturday, October 23, 2010

अलविदा...

अलविदा...
कहने से पहले
एक लड़की
मांस का पूरा लोथड़ा
चौदह साल का..

टकटकी लगाए देखती है
बोलती भी है -
- ‘‘खत्म होगा राम का वनवास
फिर पटरी पर लौटेगी जिंदगी -
बोझिल कंधों के हल्का होने पर
कुंठा छोड़, मुस्कुरा लेना
मेरे प्यारे पापा....’’

अल्फाजों का एक-एक लश्कर
चुभ रहा है -
जैसे मेरे ही दिल का टुकड़ा
कुछ कहकर
दिगंत में चुपचाप...
मैं सिर्फ अकेला -
अलविदा...