Saturday, October 23, 2010

अलविदा...

अलविदा...
कहने से पहले
एक लड़की
मांस का पूरा लोथड़ा
चौदह साल का..

टकटकी लगाए देखती है
बोलती भी है -
- ‘‘खत्म होगा राम का वनवास
फिर पटरी पर लौटेगी जिंदगी -
बोझिल कंधों के हल्का होने पर
कुंठा छोड़, मुस्कुरा लेना
मेरे प्यारे पापा....’’

अल्फाजों का एक-एक लश्कर
चुभ रहा है -
जैसे मेरे ही दिल का टुकड़ा
कुछ कहकर
दिगंत में चुपचाप...
मैं सिर्फ अकेला -
अलविदा...

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