स्वाइन फ्लू के नाम पर जो भय का माहौल बनाया जा रहा है कहीं वह अंतरराष्ट्रीय मेडिकल आतंकवाद का हिस्सा तो नहीं? पीडि़त व परिजनों से माफी चाहूंगा, क्योंकि उनका दर्द वही समझते हैं। लेकिन देश में स्वाइन फ्लू से अब तक 10 मरे हैं, इसी अवधि में भुखमरी, कुपोषण या गंदगी से होने वाली बीमारियां सैकड़ों को लील चुकी हैं।
प्लेग, एन्थ्रेक्स, ड्रॉप्सी, बर्ड फ्लू पर भी हुए वारे-न्यारे
इससे पहले भी हैपेटाइटिस-बी से बचाव के नाम पर करोड़ों-अरबों का कारोबार किया जा चुका है। खसरा और पोलियो उन्मूलन के दावे भी किये गये, लेकिन वैक्सीनेशन के बावजूद बीमारी आज भी है। प्लेग, ड्रॉप्सी, एंथ्रेक्स और बर्ड फ्लू जैसी बीमारियों के नाम भी सुनने में आए। प्रभावितों की संख्या भी काफी बताई गई, लेकिन मरने वालों की तादाद 10, 12 या 15 से ज्यादा सुनने में नहीं आई, वह भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर। इससे कहीं ज्यादा लोग तो भूकंप या चक्रवाती तूफान में मारे जाते हैं।
आर्थिक मंदी से जूझने का उपाय तो नहीं?
मैं यह नहीं कह रहा कि इन बीमारियों से मरने वालों के लिए इलाज नहीं खोजा जाय, बल्कि ये कहना चाहता हूं कि बीमारियों के इन खतरनाक नामों और उनके असर का डर बताकर विकसित देश अरबों का कारोबार करते रहे हैं। कहीं स्वाइन फ्लू केबहाने यह आर्थिक मंदी से जूझने का कोई उपाय तो नहीं?
स्वाइन फ्लू डर के बाद मेडिकल बाजार में उछाल!
अंदाजा लगाईए, कि जो मास्क तीन माह पहले सिर्फ दस रुपये में मिलता था आज उसकी कीमत 95 रु. से भी ज्यादा तक है। इसकेअलावा इस मौसम में सर्दी-जुकाम और वायरल अक्सर फैलते हैं, जिनका इलाज साधारण दवाओं से हो जाता है, लेकिन अब हर आदमी उन्हीं लक्षणों में अपने खून और दूसरी जांच कराता फिर रहा है। जाहिर है कि डॉक्टरों और मेडिकल लेबोरेटरी के साथ साथ कमीशन का धंधा भी खूब चल पड़ा है।
सरकार भी कई हजार अरब का बजट बनाकर स्वास्थ्य सेवाओं का विकास करेगी और वैक्सीनेशन के नाम पर अरबों-खरबों का कारोबार होगा सो अलग।
भुखमरी, कुपोषण से मरने वालों की तादाद
दूसरी तरफ भुखमरी और कुपोषण से मरने वालों की तादाद रोकने के लिए महज अनाज और सस्ती सेवाएं हाशिये पर चलीं जाएं, तो कोई बात नहीं। गंदगी के चलते मच्छर मारने के लिए फॉगिंग और नालियों की सफाई का बजट भी स्वाइन फ्लू की भेंट चढ़ जाए तो कोई परेशानी नहीं। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश में पिछले तीन माह के दरम्यान भुखमरी के चलते 103 किसान या तो आत्महत्या कर चुके हैं, या मर चुकेहैं। सूरत में हीरा व्यवसाय चौपट होने के चलते इन्हीं तीन महीनों में 37 लोग काल-कवलित हो चुके हैं। कुपोषण केचलते हर माह सैकड़ों बच्चे मौत की नींद सो जाते हैं।
डेंगू, वायरल और चिकनगुनिया से मरते हैं ज्यादा लोग
डेंगू, वायरल या चिकनगुनिया का प्रकोप भी इन्हीं दिनों शुरू होता है और कईयों को मौत दे जाता है। लेकिन न तो सरकार इस भूख से मरने वालों को रोक पाल रही हैं, और न ही मंदी में व्यवसाय चौपट होने के चलते बेरोजगारों को आत्महत्या करने से रोक पा रही है। और तो और मच्छर मारने केलिए कारगर उपाय भी नहीं हो पा रहे हैं, लेकिन स्वाइन फ्लू के नाम पर होने वाला कारोबार जरूर कई सवाल छोड़ रहा है।
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आपकी पोस्ट पढ़कर दिमाग में यह बात आती है जैविक हमला भी आतंक द्वारा किया जा सकता है .
ReplyDeleteबहुत सही बात लिखा है आपने .. जिस देश में भूख और कुपोषण से इतने लोग मरते हों .. परेशान होकर आत्महत्या करने को मजबूर होते हों .. उस देश में स्वाइनफ्लू से दो चार मौत हो जाने से इतना भयावह माहौल बनाने की क्या जरूरत ?
ReplyDeleteआपकी सोच में गहराई है। आपने एक विचारणीय मुद्दा उठाया है।
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
बिलकुल हो सकता है, खासकर दूसरा और तीसरा बिन्दु… बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपने फ़ायदे के लिये कितनी भी नीचे गिर सकती हैं…
ReplyDeleteआप के आलेख से पूरी तरह से सहमत हूँ। सुरेश जी का कहना है कि बहुराष्ट्रीय कंपनि्याँ कुछ भी कर सकती हैं। मेरा अनुभव है कि कोई भी कंपनी कुछ भी कर सकती है। भारत के राष्ट्रीय दानवीरों ने क्या क्या किया है। मैं तो प्रत्यक्ष गवाह हूँ। कुछ दिनों से यह विचार दिमाग में कौंध रहा है कि हो सकता है इस वायरस का विकास ही कृत्रिम तरीके से हुआ हो। खैर!
ReplyDeleteयदि यह आफत प्राकृतिक भी है तो भी इस अवसर को मुनाफे के लिए भुनाने में कोई भी न चूकेगा। यह तंत्र ही ऐसा है जिस में मानवता की दुहाई देकर मानवों का शोषण जारी रहता है।
कुछ गड़बड़झाला तो है, मैं पहले भी अपनी टिप्पणियों में इशारा कर चुका हूँ।
ReplyDeleteइस तरह की कई व्याधियों के स्त्रोत ही नहीं पता चलते? स्वभाविक हों कारण तो पता चले ना!
ReplyDeleteयह मुद्दा हर पढ़े-लिखे व्यक्ति के दिमाग में है लेकिन जब आफत आयेगी तब क्या यह विचार काम करेगा? षड़यंत्र कुछ भी हो शिकार तो सभी होते हैं ।
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