Wednesday, July 22, 2009

चारदीवारी....

जिसने जलाया पहला दिया
अँधेरे के खिलाफ,
हमने भी इस युद्ध में
बुहारकर अपना घर-आँगन
रोशन किया...
खड़ी की चारदीवारी,
तूफ़ान थामने को -
युद्ध में अकेला नहीं -
पहला दिया.

माना अन्धकार ही पहला सच,
नहीं मिटायेंगे जंगल में -
उसका वजूद,
घर-आँगन में रोशन
कई दीपक, एक साथ...
आओ मरम्मत करें,
ढहने न दें चारदीवारी.

सच के दो वजूदों का टकराव -
ला न दे तूफ़ान कहीं?
मरम्मत करते रहेंगे हम, चारदीवारी.
कहीं नज़र न गढा दे मुआ,
उस पार का अन्धकार....

इस पार -
खोखला होता वजूद,
सारी उम्र, बस यूं ही -
मज़बूत करते रहे, चारदीवारी...

1 comment:

  1. बहुत भावनात्मक रचना ---- बहुत सघन भाव
    वाह

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