Wednesday, August 5, 2009

मिलाओ न सुर अजानों से, ये राग भड़क जाएगा

कुरेदोगे दिल की जानिब, ये घाव दरक जाएगा।
मिलाओ न सुर अजानों से, ये राग भड़क जाएगा।

हम तो समेट ही लेते, मुठ्ठी में आसमां यूं ही
क्या खबर मंजिल से ही, ये पांव सरक जाएगा।

अब ये सिला हमको कुबूल, दोजख में जो रुलाएगा।
लो हटा लो तुम नकाब, ये दांव पलट जाएगा।

क्यूं नाखुदा है बेरहम इतना कि सबको नागवार,
आओ चलें उस पार हम, ये जाम छलक जाएगा।

हुस्ने-खता हमसे हुई, क्यों हो रहा सबको मलाल।
नीची नजर कर लो जरा, ये गांव बहक जाएगा।

खानाबदोशी में शबे चश्मनम हम आफताब,
बस ला इलाही अल सहर, ये दाग झटक जाएगा।

(जून २००८ को राष्ट्रीय पत्र में प्रकाशित)

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया ,घाव दरक जाएगा , मिलाओ न सुर अजानों से ये राग भड़क जाएगा , सबके सुर में गाने लगेंगे तो एक ही राग तूल पकड़ लेगा , वाह | ब्लॉग तारीफ़ के लायक है , हम चार-दीवारियाँ ही मजबूत करते रहते हैं |

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  2. वाह ..क्या गज़ब अशार हैं ...!हरेक पंक्ति दोहराई जा सकती है ..!

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